Health Insurance and Life Insurance Premium: जब 3 सितंबर के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रात को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये बताया कि जीएसटी GST में बड़ा बदलाव हुआ है। हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम को टैक्स फ्री कर दिया गया है।
हेल्थ इंश्योरेंस और लाइफ इंश्योरेंस (Health Insurance and Life Insurance) पर जीएसटी कम करने की मांग इंडस्ट्री बहुत पहले से कर रही थी। जीएसटी काउंसिल की 56वें बैठक में बीमा पर जीएसटी को नील कर दिया गया। ये बदलाव 22 सितंबर 2025 से लागू होगा। अब अगर आप सोच रहे हैं कि इस बदलाव के बाद हेल्थ (Health Insurance) और लाइफ इंश्योरेंस (Life Insurance) सस्ता होने वाला है। तो आपको बता दें कि शायद ऐसा नहीं होने वाला है। हां ये बात तो पक्की है कि सरकार ने व्यक्तिगत हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर 18 फीसदी जीएसटी हटाकर शून्य कर दिया है। लेकिन इससे बीमा सस्ता होगा इसको लेकर एक्सपर्ट की राय अलग है। एक्सपर्ट इसका असर उलटा पड़ने की आशंका जता रहे हैं।
क्या हैं GST बदलाव के मायने ?
इस बदलाव के मायने ये हैं कि व्यक्तिगत लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी जैसे टर्म प्लान और व्यकि्तगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी शून्य जीएसटी कैटेगरी में आ गई है। इसके अलावा बीमा के जो ट्रेडिशनल प्लान होते हैं जिसमे इंडोमेट और यूलिप जैसे प्लान हैं इसमे रिस्क कवर और सेविंग दोनों का एक मिक्स मिलता है, इसमे भी जीएसटी कम करने का लाभ मिलेगा।
लेकिन जीएसटी शून्य होने के बाद भी एक्स्पर्ट ऐसा क्यों कह रहे हैं की बीमा सस्ता होना मूश्किल है ? चलिए इसे उदाहरण से जानते हैं। पहले जानते हैं कि आपका बीमा GST हटने के बाद आइडियली कितना सस्ता होना चाहिए पहले इसको एक कैलकुलेशन से जानते हैं।
पहले बीमा कर कितना लगता था GST?
बता दें कि पहले हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर ग्राहकों को 18% जीएसटी देना होता था। इसका मतल ये है कि 100 रुपये के प्रीमियम पर 18% जीएसटी के हिसाब से ग्राहकों को 118 रुपये देने होते थे। इसमे 18 रुपये आपको बतौर जीएसटी देने होते थे। जिसके वजह से प्रीमियम की लागत 118 रुपये पड़ती थी। लेकिन अब जीएसटी शून्य होने से ग्राहकों को ये 18 रुपये नहीं चुकाने होंगे। और अगर हम प्रीमियम को 10000 माने यानी किसी ग्राहक का इंश्योरेंस का प्रीमियम 10000 है और इसपर कोई जीएसटी नहीं लगेगा तो सिधे ग्राहकों को 1800 रूपये की बचत होने वाली है। लेकिन ऐसा क्यों नहीं होगा इसको उदाहरण से जानते हैं।
ऐसे समझें पूरा गणित
ये पूरा मामला है इनपुट टैक्स क्रेडिट (input tax credit)का यानी अभी जो बीमा कंपनीयां ग्राहकों से 18% जीएसटी लेती थी उसका इस्तेमाल कंपनीयां अपने खर्चो जैसे कि एजेंट का कमीशन, मार्केटिंग,ऑफिस रेंट को कवर करने के लिए भी करती थी। ऑफिस रेंट और दूसरे खर्चे जो वो करती थी उसमे जो वो टैक्स अदा करती थी वो इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के जरिए एडजस्ट हो जाता था। यानी कंपनी को 1800 रुपये टैक्स के तौर पर देना पड़ता था उसमे वो अपने खर्चों को माइनस कर लेती थी और जो हिस्सा बचता था वो सरकार के पास जमा करती थी।
कंपनी कैसे माइनस करती है अपने खर्चे
तो मान लिजिए 10000 के प्रीमियम पर जिस पर 18% जीएसटी यानी 1800 रुपये का टैक्स है। अब ग्राहक के लिए ये प्रीमियम 11800 का हो जाता था। तो कंपनी इसमे से अपने खर्चे कैसे माइनस करती थी इसे उदाहरण से समझते हैँ। मान लिजिए एक बीमा कंपनी 4000 ऑफिस रेंट देती है 3000 एजेंट कमिशन देती है और 1000 इलेक्ट्रिसिटी बिल देती है। इलेक्ट्रिसिटी बिल पर कंपनी ने कोई टैक्स नहीं दिया लेकिन जो दूसरे खर्चे हैं एजेंट कमिशन और ऑफिस रेंट यानी 4000 और 3000 मिलाकर 7000 पर कंपनी ने 18% जीएसटी 1260 रुपये देगी। अब कंपनी 1260 को ग्राहक के द्वारा दिए गए जो 1800 रुपये की जीएसटी है उससे एडजस्ट कर देती थी जिसके बाद 540 रुपये बच जाते हैं। कंपनी सरकार को यही 540 रुपये चुकाती थी। इसी पूरे प्रोसेस को इनपुट टैक्स क्रेडिट कहा जाता है।
कहां फंस रहा है पेंच ?
अब नए बदलाव के बाद ग्राहक को अपने प्रीमियम पर कोई टैक्स नहीं चुकाना है। अब ग्राहक ये सोच रहा है कि उसे 10000 रुपये बीमा प्रीमियम के लिए सिर्फ 10000 देने होंगे। लेकिन बीमा कंपनी अपने खर्चे (ऑफिस रेंट, ऐजेंट कमिशन) अभी भी कर रही है। लेकिन जीएसटी शून्य होने के बाद से वह अपने खर्चे को डजस्ट नहीं कर पाएगी। तो वो अपने खर्चों पर जो जीएसटी चुकाएगी उसे अगर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा तो ये भार किसपे जाएगा ? बीमा कंपनीयों पर जीएसटी का खर्च जो 1260 रुपये जो उदाहरण में बन रहा है उसकी वसूली भी तो ग्राहंको से ही होगी। इसी वजह से कहा जा रहा है कि बीमा पर जीएसटी शून्य करने के बाद भी प्रीमियम के कीमत कम होने पर संशय है।
बीमा पर GST शून्य के पीछे सरकार का उद्देश्य
बीमा पर जीएसटी को शून्य करने के पीछे सरकार का मकसद बीमा के पहुंच को बढ़ाना है। लागातार बीमा लेने वालों के तादाद में गिरावट देखी जा रही है। बीमा इंडस्ट्री के लिए ये बड़ी चिंता की विषय है। भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण इसकी 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट बता रही है कि GDP में इंश्योरेंस प्रीमियम का हिस्सा लागातर एक डाउनवर्ड स्लाइड पर चल रहा है। और ये 2023-24 में 4% से गिरकर 3.7 % तक पहुंच गया था।